मेरा घर
सालों से राह तकता मेरे मैके का घर
बगीचे में हर साल , मौसमी फल लग ही जाते हैं
नीली चिडिया आती है
कुछ देर इधर उधर फुदकी हैफिर अंजानी दिशा में उड जाती है.
मैं जिंदगी की डोर थामे
नियति के साथ चल रही हूँ
कितने अनजानेे रास्ते से रूबरू होते
कभी धुँआ सा उठता
कभी क्षितिज में झिलमिलाता
मेरा वजूद
किसी खाई में पनपता हरयाली सा लगता है
मैं हर रात सोचती कल घर लौट जाऊँगी
सुबह एक नयी दिशा में मेरा पैर मुड़ जाता है.
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