बगुला और सरसिज
उसका नाम सरसिज था
सुन्दर .....कमल के फूल की तरह
मैंने पूछा था___
"तुम समझती हो ?
अपने नाम का मतलब!!"
"मुझे क्या लेना-देना
नाम की परिभाषा से"
फिर एक दिन मैंने पूछा___
"तुम इन बगुलों में क्या देखती हो?"
"अपना गुरू है।"
वह बहुत गम्भीर थी।
मैं मुस्करा के चल दी।
जीवन के रास्ते ने कई मोड़ लिये
मैं भी एक रास्ते चल दी___!
उसे भी साथ चलने को कहा।
बड़ा साफ़ जवाब था उसका
"मैं अपने मंजिल पर हूँ।"
मुझे उसके जवाब ____
रास्ते भर परेशान करते रहे
लेकिन मुझे अपनी मंजिल तलाशनी थी।
सालों के भटकन के बाद
मैं फिर उसी जगह पर आयी
शांत सरोवर
दीर्घ पत्तों के बगल में कई सरसिज खिले थे।
और बगुले खडे थे मौनावस्था में_____!!
स्वच्छ जल में मछलियाँ तैर रही थी
तभी मैंने छपाक् की एक आवाज़ सुनी
बगुले की चोंच में एक बड़ी मछली___
छटपटा रही थी।
मैंने तालाब पर दृष्टि डाली
जल में हलचल था।
सरसिज मुस्करा रही थी
उसकी मुस्कराहट में___
'ज्ञान, दर्शन, राजनीति__
मुक्ति निर्वाण सब कुछ समाहित था।'
___कुंती।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें