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मंगलवार, 26 मार्च 2024

Rhododendron

                               Rhododendron

•Rhododendron को बुराँश भी कहा जाता है।
Rhododendron या बुराँश उत्तराखंड के राज्य वृक्ष है।
• Rhododendron को Nagaland में राज्य फूल के रूप में नामित किया गया है।
• Rhododendron Darjeeling Sikkim हिमालय में बहुतायत से पाया जाता है। भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण BSI   Botanical Survey of INDIA ने एक नवीनतम प्रकाशन में इस बात की पुष्टि खी है।
• Rhododendron भारत के अलावा Asia, North America और यूरोप के समशीतोष्ण क्षेत्रों के साथ-साथ South East Asiaऔर Northern Australia के Tropical क्षेत्रों
 में पाया जाता है।
• Rhododendron जीनस समूह में बारह सौ 1200 से अधिक  विभिन्न प्रजातियाँ है।
• Rhododendron की भारत में 132 taxa (80 प्रजातियाँ, 
 25 उप-प्रजातियाँ और 27 किस्में ) पायी जाती है।
• Rhododendron BSI के प्रकाशन में दर्ज  45 taxa में से 24 दार्जिलिंग हिमाचल में 44 Sikkim Himalayas में पाए जाते हैं।

RHODODENDRON- हिमालय में फूल  मार्च-एप्रिल में जब बुराँश खिलते हैं तो इसकी शोभा अतुलनीय होती है।

Rhododendron फूल वाले पेड़ समुद्र तल से 1,500टर से लेकर

5,000 मीटर से अधिक की ऊँचाई  पर पाए जाते हैं।

सफ़ेद बुराँश समुदतल से 9 हज़ार  से दस हज़ार फीट की ऊंचाई पर खिलते हैं।

एक अपवादस्वरूप: सेलंग गांव में पिछले की सालों से सफ़ेद बुराँश खिल रहा है।

     

           ● ज्ञात हो कि सफ़ेद बुराँश जहरीला होता है।

Rhododendron फूलों में अनेक औषधीय गुण पाये जाते हैं।

जैसे:-

ह्रदय रोग संबंधित समस्याएं, पेचिश, दस्त, विषहरण, सूजन, बुखार, कब्ज,  ब्रोंकाइटिस,  और अस्थमा से जुड़ी बिमारियों की रोकथाम में और उपचार होती हैं।

Rhododendron की पत्तियों में प्रभावी antioxidant गतिविधि पायी जाती है।

लाल बुराँश के जूस बहुत फ़ायदेमंद होते हैं।

(कोई अगर बुराँश से अपनी उपचार करना चाहें तो अपने वैद्य से जरूर सलाह लें)

पहाड़ों पर सर वस्तु के साथ कोई न कोई  कहानी जुड़ी होती है।

            लाल बुराँश के फूल से जुड़ी एक मार्मिक कथा 


गढ़वाल के एक गांव  में एक लड़की रहती थी। वह अपनी माता-पिता की अकेली संतान थी।
उसकी शादी दूर पहाड़ की तराई में हो गयी थी।
उसकी सास उसे बहुत दुख देती थी।
वह जब भी अपने माता-पिता को देखने जाने की बात करती तो उसकी सास उसे तरह-तरह के कामों में उलझा देती।
ऐसे कई साल बीत गये।
इधर उसकी माता पिता अपनी बेटी की बाट जोहते- जोहते खुली आँखों स्वर्ग सिधार गये।
जब और दिन गुज़र गये तो वह लड़की से रहा नहीं गया।
वह अपने माता-पिता को देखने आयी, मगर मां-बाप के बदले उसे दो पेड़ नज़र आये जिसमें सुर्ख बुराँश खिले थे।
गाँव के लोग लड़की को बताए  कि कैसे उसकी बात देखते-देखते उसकी माता-पिता अपने प्राण त्याग दिये थे।
लड़की पेड़ से लग कर ज़ार-ज़ार रोयी थी। तभी से एक प्रथा सी चल पड़ी है कि गढ़वाल में जबभी बुराँश खिलता है तो लड़की अपने मायके आती है।

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