RAIN 🌧 बरसात
RAIN - बरसात
रात भर ___
हाँ रात भर____
मेघों ने बहुत प्रलोभन दिया।
छत से टपर टपर की आवाज़ आती रही
बिजली गुल थी
मैंने खिड़की के पर्दे हटा रखे थे
बहुत गरमी के बाद ये बारीश नसीब हुई थी
आँखें नींद से बोझिल थी
और सपनों के अम्बार लगे थे
लेकिन _____मुझे सोना था
सपने नहीं देखने थे
ये मेघों का प्रलोभन_____!!
खेत __तालाबों में परिणत थे
नाव __न पतवार को खेना था
माझी भी कहीं दुबका पड़ा था।
मैंने कब पहली बार बारिश में____
तुम्हारे साथ
हाथों में हाथ लिये
उस पगडंडी पर चली थी
जो पहाड़ों से होकर मेघों के देश जाता था।
हाँ, तब मेघों ने हमें निमंत्रण दिया था।
कितने भीगे थे हम
तन से कहीं ज्यादा भीगा था मन।
RAIN🌧 -बरसात
अब तो बात पुरानी हो गयी है
पर याद कितनी ताज़ी है
आज फिर मेघों ने निमंत्रण दिया है
लेकिन____ जब मैंने लिया नहीं निमंत्रण
तब देखो उसका प्रलोभन।
RAIN-बरसात
मेरे आँगन में हीरक मुकुट बरसा रहा है
मैं ने बिजली की स्मित रेखा में दूर तक देखा।
लेकिन____बोझिल आँखें
मैं सो गयी थी।
सुबह हीरों के कण बेल बूटों पर बिखरे थे।
RAIN-बरसात
मैंने आकाश की ओर देखा
बादल झुके थे
बरसने को उद्यत
अहा !मेघ तुम्हारा प्रलोभन !
मैंने मुस्का दिया।"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें