एक छोटी सी प्रेम कथा
बारीश के बुंदों की तरह
मैं एक छोटे से गाँव में अध्यापिका थी.
एक तरह की जिंदगी, एक ही तरह के लोग.
खाली जीवन__सूनी जिंदगी.
चलते_चलते दो आँखें मुझे घूरने लगी.
एक दो दिन नहीं __सप्ताह भर बाद
मेरे मन में कुछ हलचल सी होने लगी
मैंने भी मुडकर देखा, मेरी सूनी आँखों में जान आ गयी
मैं मुस्कुरा थी
वह करीब आया
इतना करीब कि उसके साथ जीने मरने का ख्याल सताने लगा___
मैं उससे कुछ कहती तभी उसने कहा___
"मेरी छुट्टी खत्म हो गयी है. मैं बारहवीं पास हो गया हूँ."
उफ्फ ! मेरे भगवान!!
मैं उससे जीवन के दस वसंत आगे थी.
वह जैसे आया था चला गया
मेरी सूनी राह और सूनी हो गयी __और
नदी किनारे नाव माझी के बिना और उदास हो गया.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें