सारे जगत से लड़ती
विश्व पताका लेकर
जब मैं आयी अपने आवास पर
कोरे कमरे में पसरा था एक सन्नाटा
कुछ सीलन भरा
कुछ सिसकता हुआ
खिड़की खोली जब मैंने
उलाना देती एक छोटी सी रोशनी
भीड़ गयी मेरे मन से !
मन की विशालता
लड़ न सकी
उस छोटी किरण से
क्योंकि____मेरे मन की ग्रन्थि विशाल हो गया था
अपनी दुनिया में वापस आकर
(उपसंहार)
कितना कुछ पीछे छूट जाता है
एक लाड़ दुलार के बिना
चाहे घर हो या इंसान।
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