कब मैंने तुमसे वादा किया था।
मैंने कब बाँधा था तुम्हें बंधन में,
जो भी किया था, तुमने ही किया
हर सुबह आलस्य तजकर
हमने पंजा की थाल सजाई
और अरूणोदय होते तुम्हारा दर्शन किया।
मिथ्या लगी थी जग की सारी बातें
जब हमने तुमसे प्रेम किया ।
अब क्रोध करूँ या मान करूँ
या करूँ अपनेआप पर दया___
रीति रिवाजों के नाम पर
खींच दी तुमने सिंदूर की लम्बी रेखा
भाग्य ने लिख लिया माथे पर मृत्युदंड
चेरहे पर घूँघट खींचकर _____
मौत का कहीं नामोनिशान नहीं
फिर भी
खामोश है तकदीर
एक अदृश्य भय मन को है सालता
कबतक है असूतित्व मेरे सुराग का
माथे की बिंदी दर्पण से है पूछती
हरदम एक सवाल
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