घुँघट की आोट से जितने गाने मैं तुमको सुना चुकी हूँ
उतनी बार तो शायद ___चाँदनी सागर की लहरों पर थिरकी नहीं होगी ?
अब कौन सा गीत तुम सुनना चाहते हो..?
जबकि सारे मौसमों के गीत मैं सुना चुकी हूं...!
*
हवा जाने क्या गुनगुनाता है..?
कुछ शब्दों के मकड़जाल में उलझ जाती हूँ..!
कितना सोचती हूँ..!
सोच-सोच कर दिमाग खाली हो जाता है।
एक शून्य बाहर और भीतर घिर आता है.!⁹
एक अधूरापन..
मन को सालता है..!
तब कोई ज्ञान की बातें मुझे रास नहीं आता है...!
*
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